एक सुन्दर पंक्ति
कभी साथ बैठो.. तो कहूँ कि दर्द क्या है... अब यूँ दूर से पूछोगे.. तो ख़ैरियत ही कहेंगे... सुख मेरा काँच सा था.. न जाने कितनों को चुभा गया..! आईना आज फिर, रिशवत लेता पकड़ा गया.. दिल में दर्द था और चेहरा, हंसता हुआ पकड़ा गया... वक्त, ऐतबार और इज्जत, ऐसे परिंदे हैं.. जो एक बार उड़ जायें तो वाप…